अपने मन को ईश्वरीय रंग में रंग कर भीतर और बाहर दोनों ओर शुद्धता एवं पावनता के रंग बरसाए : गुरुदेव आशुतोष महाराज

0
121
Spread the love
Spread the love

New Delhi : होली के दिन कोई आपके ऊपर रंग डाले, तो क्या बुरा मानने वालीबात है? बिल्कुल नहीं। अगर कोईपिचकारी से रंगों की बौछार करे, तो क्या बुरामानने वाली बात है? बिल्कुल नहीं। अगर कोईखुशी में झूमे-नाचे, तो क्या बुरा मानने वाली बात है? बिल्कुल भी नहीं।तभी तो जब गुब्बारा पड़ता है, कपड़े भीगते हैं, अलग-अलग रंगों औरडिज़ाइनों में चेहरे चमकते हैं- तो भी सब यही कहते हैं- ‘भई बुरा नमानो, होली है!’

लेकिन यदि रंग की जगह लोग एसिड फेंकने लग जाएँ… खुशी मेंझूमने की जगह नशे में होशो-हवास खोकर अश्लील और भद्दे काम करनेलग जाएँ… पर्व से जुड़ी प्रेरणाएँ संजोने की बजाए, हम अंधविश्वास औररूढ़िवादिता में फँस जाएँ- तब? तब फिर इस पर्व में भीगने की जगह पर्व से भागना ही बेहतर है।

अपने निजी स्वार्थ के लिए आज हमने त्यौहारों के मूल रूप को ही बर्बाद कर दिया है। हमने मिलावट की सारी हदें पार कर दी हैं। होली के रंगों में अकसर क्रोमियम, सीसा जैसे जहरीले तत्त्व, पत्थर का चूरा, काँच का चूरा, पैट्रोल, खतरनाक रसायन इत्यादि पाए गए हैं। इन मिलावटी रंगों से एलर्जी, अन्य बीमारियाँ, यहाँ तक की कैंसर होने का खतरा भी होता है। अफसोस! जहाँ रंगों से ज़िंदगी खूबसूरत होनी चाहिए थी, वहाँ आज ये जानलेवा बन गए हैं। न केवल होली के रंग स्वार्थ, द्वेष, लोभ आदि विकारों के कारणघातक हुए हैं, बल्कि अंधविश्वास और रूढ़िवादीपरंपराओं ने भी इसपर्व में दुर्गंध घोल दी है।

परम्पराओं के नाम पर आज होली के साथभांग-शराब को जोड़ दिया गया है, जिसने इसके चेहरेको और विकृत बना दिया है। लोगों के अनुसारहोली और भांग- दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।कैनाबिस के पौधे से बनने वाली भांग एक नशीला पदार्थ है। वैसे तो भारत में कैनाबिसका सेवन गैरकानूनी है। परन्तु लोगों कीधारणाओं और परम्पराओं के नाम पर प्रशासनभी ऐसे मौकों पर अपनी आँखें मूँद लेता है।बल्कि ऐसी मान्यताओं का खुद भी सहयोगीबन बैठता है। यहाँ तक कि आज भांग कोहोली का अधिकारिक पेय कहकर संबोधित किया जाता है।गाँवों की चौपालों, होली मिलन के कार्यक्रमों और बनारसके घाटों पर, जो भगवान शिव की भूमि कही जाती है-वहाँ भी आपको होली के दिन जगह-जगह लोगों के झुंडदिखाई दे जाएँगे… क्या करते हुए? बड़ी मात्रा में भांग बनाते और पीते हुए।

जहाँ होली का चेहरा समय के साथ और ज़्यादा खराब तथा भयावह होता जा रहा है, वहाँ अभी भी कुछ क्षेत्र, कुछप्रांत और कुछ प्रथाएँ ऐसी हैं, जो इसे खूबसूरत बनाए रखने में प्रयासरत हैं। उत्तरप्रदेश, बंगाल इत्यादि में कुछ जगहों पर आज भीऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं, जहाँ होली को रंग-बिरंगेफूलों से और टेसू के फूलों से बने शुद्ध रंगों से खेला जाताहै। इससे न तो लोगों को किसी प्रकार से हानि पहुँचतीहै, न ही प्रकृति को।इसी तरह दक्षिण भारत के कुदुम्बी तथा कोन्कन समुदायोंमें होली हल्दी के पानी से खेली जाती है। इसलिए वहाँ होली को ‘मंजल कुली’नाम से मनाया जाता है, जिसकामतलब होता है- हल्दी-स्नान! केरल के लोक-गीतों केसंग इस पर्व में सभी लोग शामिल होते हैं। अतः इसप्रकार हल्दी के औषधीय गुणों से खुद को तथा वातावरणको लाभ देते हैं।

निःसन्देह, ऐसे उदाहरण सराहनीय हैं तथा अनुकरणीयभी। ऐसी प्रेरणाओं को अपनाकर हम इस रंगों के पर्व कोफिर से सुन्दर बना सकते हैं। परन्तु होली की वास्तविकखूबसूरती सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। मूल रूप से यहपर्व दिव्यता एवं शुद्धता से परिपूर्ण है। यह शुद्धता, सुन्दरता, सौम्यता एवं दिव्यता वास्तव में तभी इस पर्व में झलकते हैं- जब इंसान अपने मन को गुरु के माध्यम से ईश्वर के रंग में रंग लेता है।तो आएँ, इस पर्व की बिगड़ी हुई सूरत को फिर से खूबसूरत बनाएँअपने मन को ईश्वरीय रंग में रंग कर।फिर भीतर और बाहर- दोनों ओर शुद्धता और पावनता के रंग ही बरसेंगे… न कोई बुरा मानेगा… न कोई बुरा करेगा… और इस पर्व के आने पर सब खुशी से एक स्वर में कह उठेंगे… होली है!

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सभी पाठकों को होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here