New Delhi News, 12 March 2019 : समाज के विभिन्न वर्गों के बच्चों की शिक्षा की दिशा में करने वाली संस्था रितेश रावल फाउंडेशन ने राष्ट्रीय स्तर पर क्रियामूलक शिक्षा (लर्निंग बाय डूइंग) अभियान शुरू किया है। अभियान का लक्ष्य है देश भर के सरकारी स्कूलों के बच्चों को क्रियामूलक शिक्षा का अनुभव प्रदान करना।
अभियान का लक्ष्य है राज्यों के उन दूर-दराज़ इलाकों तक पहुँच बनाना जहाँ शिक्षा का स्तर अभी भी राष्ट्रीय स्तर से काफी पीछे है। ऐसे समय में जबकि स्कूल आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस, ऑगमेंटेड रियलिटी, वर्चुअल रियलिटी की और बढ़ रहे हैं और कई स्कूलों ने तो शिक्षा के लिए टेबलेट और अन्य स्मार्ट उपकरणों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है, ग्रामीण भारत अभी भी किताबों और ब्लैकबोर्ड पर निर्भर है।
रितेश रावल फाउंडेशन के संस्थापक श्री रितेश रावल ने कहा, “क्रियामूलक शिक्षा अभियान का उद्देश्य है सिर्फ सुन-पढ़ कर सीखने के बजाय विषय को प्रायोगिक स्तर पर समझना। संगठन का लक्ष्य है स्थानीय सरकार के घटकों के साथ मिलकर इस विचार पर अमल करना और बाद में नीतिगत स्तर प्रभाव डालने का प्रयास करना ताकि मानकीकरण हासिल हो सके।”
रितेश रावल फाउंडेशन के इस अभियान का लक्ष्य है सितम्बर 2019 तक करीब पांच राज्यों तक पहुँच बनाना और 2022 तक भारत के पांच लाख से अधिक छात्रों से जुड़ना। अध्ययन के आधार पर अभियान को दो चरणों में विभाजित किया गया है। पहले चरण का लक्ष्य है जागरूकता पैदा करना और स्कूलों में पढ़ाई का मूलभूत माहौल तैयार करना ताकि कियामूलक प्रक्रिया को अपनाया जा सके। इस किस्म की पढ़ाई का माहौल तैयार करने के उद्देश्य से शिक्षकों के लिए एक क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित किया जायेगा और उन्हें यह सिखाया जायेगा की “क्रियामूलक शिक्षा” के लिए माहौल कैसे तैयार किया जाये। हर छात्र को भी क्रियामूलक शिक्षा सम्बन्धी स्टार्टर किट और स्कूल को खेल, संगीत, कला एवं हस्तशिल्प आदि के रूप में नवोन्मेषी तरीके भी मिलेंगे। इस दूसरे चरण में हर स्कूल में क्रियामूलक शिक्षा का पाठ्यक्रम होगा ताकि वे ढांचागत तरीके से इस अभियान कायम रख रहे और इसे अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना सकें।
श्री रावल कहा, “हमें इस अभियान की शुरुआत हरियाणा से की है और इसकी वजह है कि जब हम राज्य पर नज़र डालते हैं तो स्पष्ट होता है कि यहाँ शहरी और ग्रामीण की बीच बड़ी खाई है, मसलन हरियाणा में ही नए दौर का शहर गुड़गांव है जहाँ विश्व के कुछ बेहतरीन स्कूल हैं और छात्र बेहतरीन पाठ्यक्रम पढ़ रहे हैं। लेकिन जैसे ही आप गुड़गांव से 100 किलोमीटर दूर जाते हैं तस्वीर एकदम बदल जाती है। स्कूलों को क्रियामूलक शिक्षा के लिए माहौल तैयार करने के लिए आधारभूत चीज़ों की ज़रुरत है और इसमें योगदान करने की बहुत गुंजाइश है। इसलिए हमें यहाँ मौका दिखा और हमने यहाँ कोशिश करने और कुछ सफलता की कहानियां गढ़ने की सोची।”