सनातन संस्था की ओर से ग्रेटर नोएडा महागुन सोसायटी गौर सिटी-2 में प्रवचन का आयोजन

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Noida News, 25 Sep 2019 : सनातन संस्था की श्रीमती राजरानी माहुर जी ने प्रवचन में श्राद्ध का क्या महत्व है इसके बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया –
श्राद्ध द्वारा उत्पन्न ऊर्जा मृत व्यक्ति की लिंगदेह में समाई हुई त्रिगुणों की ऊर्जा से साम्य दर्शाती है; इसलिए अल्पावधि में श्राद्ध से उत्पन्न ऊर्जा के बल पर लिंगदेह मर्त्यलोक पार करती है।

(मर्त्यलोक भूलोक एवं भुवर्लोक के मध्य स्थित है।) एक बार जो लिंगदेह मर्त्यलोक पार कर लेती है, वह पुनः लौटकर पृथ्वी पर रहनेवाले सामान्य व्यक्ति को कष्ट देने के लिए पृथ्वी की वातावरण-कक्षा में नहीं आ सकती। इसीलिए श्राद्ध का अत्यधिक महत्त्व है; अन्यथा विषय-वासनाओं में फंसी लिंगदेह, व्यक्ति की साधना में बाधाएं उत्पन्न कर उसे साधना से परावृत्त (विमुख) कर सकती हैं।’श्राद्ध द्वारा उत्पन्न ऊर्जा मृत व्यक्ति की लिंगदेह में समाई हुई त्रिगुणों की ऊर्जा से साम्य दर्शाती है; इसलिए अल्पावधि में श्राद्ध से उत्पन्न ऊर्जा के बल पर लिंगदेह मर्त्यलोक पार करती है। एक बार जो लिंगदेह मर्त्यलोक पार कर लेती है, वह पुनः लौटकर पृथ्वी पर रहनेवाले सामान्य व्यक्ति को कष्ट देने के लिए पृथ्वी की वातावरण-कक्षा में नहीं आ सकती। इसीलिए श्राद्ध का अत्यधिक महत्त्व है; अन्यथा विषय-वासनाओं में फंसी लिंगदेह, व्यक्ति की साधना में बाधाएं उत्पन्न कर उसे साधना से विमुख कर सकती हैं।’

साथ ही उन्होंने हमारे जीवन मे सुख दुख का क्या कारण के है उसके विषय में बताते हुए सुख की इच्छा ही दुःख का कारण है। दुःख के बंधनों से छूटने का एक ही मार्ग है और वह है ऐहिक सुख की कामना को नष्ट करना; क्योंकि सुख की इच्छा से ही मनुष्य पुण्य करने जाता है, परंतु साथ ही पाप भी कर बैठता है और जन्म-मृत्यु का यह कालचक्र चलता रहता है । सुख-दुःख के अज्ञान से छूटने हेतु ही धर्म है।’
‘अंग्रेजों ने हमारे यहां जो शिक्षाप्रणाली लागू की, उससे धर्मनिष्ठा नष्ट हुई एवं अर्थनिष्ठा बढ गई है। इससे धनोपार्जन ही शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य हो गया है। शिक्षा से हमें बोध मिलता है कि सरस्वती एवं लक्ष्मी हमारी धर्मनिष्ठा का आनुषंगिक फल हैं; परंतु अब यह धारणा पूर्णतया लुप्त हो गई है। ‘ऐहिक, पारलौकिक एवं मोक्ष, ये तीन प्रकार के सुख धर्मनिष्ठा पर ही अवलंबित हैं’, ऐसा हमारी संस्कृति बताती है। इसके विपरीत ‘सुख अर्थाधीन है, इस पश्चिमी धारणा के कारण मनुष्य सुखलोलुप हो गया एवं विज्ञान ने तीव्रता से प्रगति की । इसी के परिणाम स्वरूप मनुष्य और अधिक विषय -वासनाओं की ओर आकर्षित हुआ। पश्चिमी राष्ट्रों में अनैतिकता की भरमार हो गई। आज सर्वाधिक धनी माने जानेवाले देश अमरीका में जितनी अनैतिकता एवं दुःख हैं, उतने और कहीं भी नहीं !’यह सब की जानकारी दी गई जिसके लाभ 24 लोगो ने लिया।

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