भारतीय पर्वों का विज्ञान-बसंत पंचमी : गुरुदेव आशुतोष महाराज

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New Delhi News, 13 Feb 2021 : विद्या, कला व ज्ञान की दैवी – माँ सरस्वती की वंदना के स्वर पूरी प्रकृतिमें गुंजायमान हो जाते हैं… जब माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचम तिथि परबसंत पंचमी का पर्व आता है। इसी दिन से बसंत ऋतु का आरंभ हो जाता है। परंतुजहाँ प्रकृति बसंत के आरंभ को दर्शाती है कि इस ‘बसंत’करो ‘बस अंत’बुराइयों का, अंत हो संस्कार रहित शिक्षा का।यह ऋतुराज या बसंत का मौसम इस माह उत्साह के साथ झूम उठा है। बसंत पंचमीको ‘श्री पंचमी’भी कहा गया। इसका मतलब इस पर्व में भारत के ऋषियों का कोईओजस्वी तत्त्व ज़रूर निहित होगा। क्या है यह ओजस्वी तत्त्व?इसे समझना है, तो बसंत पंचमी के एक अन्य नाम पर भी गौर करें- ‘विद्याजयंती’। विद्या की देवी ‘सरस्वती’के जन्म अथवा प्राकट्य का दिन!कहते हैं, सृष्टि के आरंभिक काल में ब्रह्मा जी ने अद्भुत सृजन कार्यकिया। परंतु इसके बावजूद वे अपनी सर्जना से संतुष्ट नहीं थे। कारण? निर्मितसृष्टि निःशब्द थी। हर ओर मौन था। सन्नाटा पसरा हुआ था। ऐसे में ब्रह्माजी ने विष्णु जी की अनुमति से एक दैवी शक्ति की रचना की- देवी सरस्वती। यहदैवीय शक्ति ब्रह्मा जी के श्री मुख से प्रकट हुईं, इसीलिए ‘वाग् दैवी’भीकहलाईं।वाग् देवी माँ सरस्वती वीणा-वादिनी थीं। उनके प्रकटीकरण के साथ ही सकलसृष्टि संगीतमय हो गई। कण-कण से मधुर नाद झंकृत हो उठा। जल-धाराएँ ‘कल-कल’ध्वनि में गुनगुना उठीं। पवन की चाल में सरसराहट भर आई। हर कंठ में वाणीसमा गई। जड़-चेतनमय जगत, जो निःशब्द था, शब्दमय बन गया। ‘सरस्वती’नाम मेंनिहितार्थ भी तो यही है- सरस+मतुप् अर्थात् जो रस प्रवाह से युक्त हैं, सरसहैं, प्रवाह अथवा गति वाली हैं। संगीत व शब्दमय वाणी को प्रवाहशील करकेज्ञान अथवा विद्या भरती हैं।माँ सरस्वती का स्वरूप चतुर्भुजी दर्शाया गया है। इन हाथों में सुशोभितचार अलंकार माँ शारदा की विद्या दात्री महिमा को ही बतलाते है। ये अलंकारहैं- अक्षमाला, वीणा, पुस्तक तथा वरद-मुद्रा। ये चारों अलंकार प्रत्यक्षतौर पर विद्या के ही साधन हैं। वीणा ‘संगीत विद्या’की प्रतीक है। पुस्तक‘साहित्यिक या शास्त्रीय विद्या’की प्रतीक है। अक्षमाला ‘अक्षरों यावर्णों’की श्रृंखलाबद्ध लड़ी है।माँ सरस्वती का वरद-मुद्रा में उठा हुआ चौथा हाथ इस दिव्य गुणवती विद्या का ही आशीष देता है।

भारतीय संस्कृति में विद्या और विद्या दैवी
हम देखें कि हमारी संस्कृति में विद्या और विद्या दैवी सरस्वती का स्वरूप कितना सकारात्मक, शुद्ध, सत्य एवं दिव्य दर्शाया गया है। इसके विपरीत हम आज के पढ़े-लिखे वर्ग को देखें। ऐसा लगता है, पढ़ाई ने उन्हें अहंकारी बना दिया।एकाग्रचित्त हो चिंतन करके देखिए… क्या यही विद्या के अर्थी की पहचान है? माँ सरस्वती का वरद इतना विकृत परिणाम नहीं दे सकता! गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी – अपने विद्वान शिष्यों से – ‘केवल पढ़ना-लिखना या शब्दों का ज्ञान होना काफी नहीं। ऋषियों ने कहा है- ‘विद्या ददाति विनयं’ -विद्या तुम्हें विनयशील या विनम्र बनाती है। प्लेटो ने भी कहा है- ‘Knowledge is Virtue’ – ज्ञान सद्गुण है। इसलिए विद्वता के साथ सद्वृत्तियों को भी धारण करो।’

भारतीय पर्वों का विज्ञान भी- बसंत पंचमी
बसंत पंचमी के पर्व को माँ सरस्वती के प्राकट्य दिवस के रूप में मनायाजाता है। सरस्वती का प्राकट्य माने जीवन में पूर्ण सुविद्या का प्रकटीकरण।इसी बसंत पंचमी के बाद ऋतुराज बसंत का मनमोहक मौसम शुरू होता है।बसंत के इस सौंदर्य में ‘सौम्यता’सबसे बड़ा गुण होता है। न ठंड की ठिठुरनहोती है, न गर्मी का ताप। हवा शीतल और सुहावनी हो जाती है। पंच तत्त्व- जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि अपना प्रकोप छोड़कर सौम्यता धारण कर लेते हैं।सुन्दर, स्वच्छ और सुखदाता बन जाते हैं। मौसम अपने पावन रूप में प्रकट होताहै।इस पूरी प्रक्रिया में कितना दिव्य संकेत है! बसंत पंचमी के दिन, विद्याकी देवी सरस्वती प्रकट हुई; उनके प्रकट होते ही प्रकृति ने अपनी उग्रता छोड़दी। पवन शीतल बनकर सबको अपने सौम्य-स्पर्श से सहलाने लगी।इसमें प्रेरणादायक शिक्षा है। जब हमारे भीतर विद्या जागृत हो, तो हमारीप्रकृति और प्रवृत्ति भी सौम्य हो जानी चाहिए। विनयशीलता की सुहावनी बयारहमारे व्यवहार से बहनी चाहिए। यही ‘विद्या’का रहस्य है। विद्या केवलमस्तिष्क को नहीं जगाती। हमारी चेतना में परिवर्तन को भी जागृत करती है।तभी ऋग्वेद के ऋषि कहते हैं-प्रणो देवी सरस्वतीवाजेभिर्वजिनीवती धीनांवित्र्यवतुः।अर्थात् माँ सरस्वती परम चेतना हैं, जो हमारी बुद्धि प्रज्ञा औरमनोवृत्तियों को सन्मार्ग दिखाती हैं। यदि ऊँची-ऊँची डिग्रियाँ प्राप्तकरके भी यह सद्चेतना भीतर नहीं जागी, तो समझ लेना चाहिए कि सच्ची विद्याहासिल नहीं हुई। माँ सरस्वती का आशीर्वाद नहीं मिला। जीवन में न तो आंतरिकबसंत पंचमी आई, न माँ शारदा का प्रकटीकरण हुआ और न ही ऋतुराज बसंत का!

 

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