New Delhi News : कई फिल्मों के लिए टाइटल सॉन्ग लिख चुके देश के सबसे कम उम्र में साहित्य के लिए चौथा सबसे बड़ा भारतीय नागरिक पुरस्कार ‘पद्मश्री’ अवॉर्ड पाने वाले कवि डॉ. सुनील जोगी के करियर में एक और नई चीज जुड़ गई है, कवि एवं गीतकार के बाद अब वह एक्टर भी बन गए हैं। भारत के अतिरिक्त अमेरिका, कनाडा, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, नार्वे, दुबई, ओमान, सूरीनाम जैसे अनेक देशों में कई-कई बार काव्य यात्राएं करने वाले सुनील जोगी न केवल विभिन्न विधाओं में 75 से भी ज्यादा पुस्तकें लिख चुके हैं, बल्कि गीत-गजल एवं भजन के 30 से ज्यादा ऑडियो-वीडियो भी ला चुके हैं। पिछले दिनों जहां ये अनुराग बासु के निर्देशन में बनी फिल्म ‘मुक्काबाज’ में शामिल की गई अपनी एक चर्चित कविता के लिए सुर्खियां बटोर ले गए, तो अब कई फिल्मों के लिए गीत लेखन के साथ एक्टिंग में भी हुनर दिखाने के कारण चर्चा में हैं। जी हां, हास्य-व्यंग्य की विधा के सर्वाधिक चर्चित एवं प्रशंसित ‘यश भारती’ अवॉर्ड से विभूषित कवि, मंच संयोजक, लेखक, गीतकार और एक्टर हैं डॉ. सुनील जोगी।
पेश है, डॉ. सुनील जोगी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
– आजकल आपकी कविताओं की धमक कवि सम्मेलनों के साथ 70 एमएम के पर्दे पर भी बढ़ रही है। यह कैसे संभव हुआ?
मेरे लिए फिल्मों के लिए गाने लिखना कोई नई बात नहीं है। यह अलग बात है कि पिछले दिनों रिलीज फिल्म ‘मुक्काबाज’ में मेरी एक चर्चित कविता ‘ मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये’ सुनने के बाद लोगों को लगा कि मैं फिल्मी गीत भी लिखने लगा हूं, लेकिन ऐसी शुरुआत मैंने काफी पहले ही कर दी थी। ‘थोड़ा मैजिक थोड़ी लाइफ’, ‘फन’, ‘बैड फ्रेंड’ जैसी फिल्मों के टाइटल सॉन्ग के साथ मैंने इन फिल्मों के लिए गाने भी लिखे थे, लेकिन बाद में मंचों एवं अलबमों में अत्यधिक सक्रियता के कारण फिल्मों से दूरी बढ़ गई थी। लेकिन, फिल्म ‘मुक्काबाज’ ने मुझे दुबारा बॉलीवुड में सक्रिय कर दिया है।
– ‘मुक्काबाज’ में आपकी कविता को शामिल किए जाने के निर्णय की पूर्व सूचना आपको दी गई थी या नहीं?
जी, बिल्कुल दी गई थी और फिल्म के सिचुएशन के हिसाब से इसमें कुछ आवश्यक संशोधन भी करवाए गए थे। दरअसल, ‘मुक्काबाज’ के एक्टर विनीत सिंह मेरे जानने वालों से हैं। उन्होंने ही मुझे फोन करके बताया था कि अनुराग बासु मुझसे बात करना चाहते हैं। अनुराग बासु से बात हुई, तो उन्होंने मुझसे यह कविता अपनी फिल्म में शामिल करने की इजाजत मांगी। मैंने स्वीकृति दे दी। इसके बाद उन्होंने कहा कि फिल्म के हिसाब से कविता की कुछ पंक्तियों को बदल दें, तो बेहतर होगा। मैंने वैसा कर दिया और वह फिल्म में शामिल हो गई। इसका फायदा यह हुआ कि अनुराग बासु से भी मेरी अच्छी दोस्ती हो गई और आगे साथ काम करने का रास्ता भी खुल गया।
– पहले कवि, फिर गीतकार और अब एक्टर… यह गंभीर बदलाव कैसे संभव हुआ?
बस यूं ही कहीं से ऑफर आया, तो मैंने भी नई विधा में हाथ आजमाने के इरादे से ‘हां’ कह दिया और इसी के साथ एक्टिंग से भी नाता जुड़ गया। वैसे, कैमरा मेरे लिए कोई नई चीज तो है नहीं, क्योंकि चाहे वीडियो शूट करना हो या चैनल पर कवि सम्मेलन या फिर म्यूजिक अलबम, बिना कैमरा फेस किए तो कहीं बात बन नहीं सकती है। यही वजह है कि मैं कैमरे के सामने बिल्कुल सहज रहता हूं। दूसरा, फिल्मी लोगों की तुलना में मेरा भाषागत ज्ञान कहीं ज्यादा बेहतर है और एकाध बार स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद ही वह मुझे याद हो जाती है। इसके अलावा किरदार में ढलने की कला भी मेरे पास है, जो मुझे एक्टिंग में मदद पहुंचा रही है। फिलहाल तीन फिल्मों ‘जीनियस’, ‘चूड़ा’ और ‘करीम मोहम्मद’ में काम कर रहा हूं, जिसमें से ‘जीनियस’ और ‘करीम मोहम्मद’ तो इसी 24 अगस्त को रिलीज होने वाली है।
– किस तरह की फिल्में हैं ‘जीनियस’ और ‘करीम मोहम्मद’ और इसमें आपका क्या किरदार है?
‘जीनियस’ तो प्रख्यात फिल्मकार और ‘गदर’ फेम डायरेक्टर अनिल शर्मा की फिल्म है, जिसमें उनके पुत्र उत्कर्ष शर्मा लीड रोल में हैं। इसमें नवाजुद्दीन सिद्दकी खलनायक के रोल में हैं। इस एक्शन लव स्टोरी से इशिता चौहान बॉलीवुड में डेब्यू करने जा रही हैं, जबकि इसमें आयशा जुल्का और मिथुन चक्रवर्ती भी अहम भूमिका में हैं। दरअसल, ’जीनियस’ एक युवक की कहानी है, जिसके प्रयोग इतने अलग होते हैं कि विज्ञान के प्रति हमारे नजरिये को ही बदल देते हैं। इस फिल्म में मैं एक पुलिस अफसर एस. एस. चौबे के किरदार में नजर आऊंगा। इसके उलट निर्माता रवींद्र सिंह राजावत एवं डायरेक्टर पवन कुमार शर्मा की फिल्म ’करीम मोहम्मद’ बक्करवाल समुदाय के एक पिता-पुत्र की कहानी है, जिसकी पृष्ठभूमि में कश्मीर और आतंकवाद को रखा गया है। यह फिल्म जिंदगी और जमीर की बात करती है, जिसमें यह बताया गया है कि किस प्रकार कुछ लोग चुनौती लेकर जिंदगी को छोड़कर जमीर का चुनाव करते हैं। इस फिल्म में यशपाल शर्मा ने भेड़-बकरियां चलाने वाले कश्मीरी बकरवाल समुदाय के व्यक्ति की भूमिका निभाई है, जबकि मेरा किरदार उनके सहयोगी कश्मीरी मुस्लिम अजहर मियां का है।
-और फिल्म ‘चूड़ा’ के बारे में क्या कहेंगे?
‘चूड़ा’ के निर्माता भी रवींद्र सिंह राजावत हैं। यह फिल्म राजस्थान की बहुत पुरानी, लेकिन गलत सामाजिक परंपरा ‘चूड़ा’ पर आधारित है, जिसके तहत पैसों की खातिर बेटियों की अलग-अलग लोगों