New Delhi News, 25 Aug 2019 : श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव मात्र भारत में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में उत्साह और भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है। धर्म संस्थापना हेतु ईश्वर में द्वापरयुग में आज के दिवस श्री कृष्ण रूप में अवतरित होकर अधर्म का अंत किया। भारतीय सनातन सत्य को जन-जन तक पहुंचाने और उनमें प्रभु के प्रति दिव्य अनुराग जागृत करने के प्रयास हेतु दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा दिव्य धाम आश्रम, दिल्ली में भव्य स्तर पर दो दिवसीय श्री कृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। इस आयोजन का24 अगस्त को संस्कारचैनल पर विशेष प्रसारण भी किया गया।अनेकों युवाओं ने इस आयोजन को भव्य व सफल बनाने के लिए ऑन-स्टेज और ऑफ-स्टेज स्वयंसेवकों की भूमिका को पूर्ण श्रद्धा व उत्साह से निभाया। प्रभु व भक्तों के जीवन पर आधारित नृत्य-नाटिकाओं ने उपस्थित जन-समूह को भक्ति-पथ पर बढ़ने हेतु प्रेरित किया। सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्यों ने श्री कृष्ण के दिव्य लीलाओं में अंतर्निहित सार के माध्यम से श्री कृष्ण की दिव्य लीलाओं में निहित गहन आध्यात्मिक अर्थों को प्रकट किया, जो न मात्र उस युग में अपितु आज भी समाज कल्याण के लिए प्रासंगिक हैं। ईश्वर, श्री कृष्ण रूप में उस समय धरा पर अवतरित हुए जिस समय हर ओर पापाचार, अत्याचार, दुराचार व अधर्म का साम्राज्य व पसारा था। श्री कृष्ण अवतरण का मुख्य उद्देश्य सज्जनों की रक्षा, दुष्टों का विनाश व धर्म की संस्थापना करना रहा। भगवान ने महाभारत युद्ध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भगवतगीता के माध्यम से समूचे संसार को भक्ति और कर्म के सिद्धांत से परिचित करवाया। यदुवंश शिरोमणि मधुसुधन द्वारा बांसुरी का वादन दिव्य संगीत (अनहद नाद) का प्रतीक है।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि श्री कृष्ण पूर्ण अवतार है, जिनके व्यक्तित्व में व्यापकता और असीम क्षमता आदि सभी गुण विद्यमान है। गीताप्रदायक श्री कृष्ण ने भगवतगीता में इस तथ्य को स्पष्ट किया है कि जो लोग ईश्वर साक्षत्कार द्वारा शाश्वत सत्य का अनुभव कर लेते हैं, वे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। अध्यात्म के इस पथ पर साधक का प्रयास कभी विफल नहीं होता है। आध्यात्मिक जागरण, मानव को समस्त दुविधाओं से ऊपर उठा देता है। ब्रह्मज्ञान की अग्नि जीव के सभी कर्मों को जलाकर राख कर देती है।श्री कृष्ण ने महाभारत के आरम्भ में योद्धा अर्जुन को दिव्य ज्ञान प्रदान किया जिसके द्वारा वह ‘अनुचित’ व ‘उचित’ के भेद जान पाए और शाश्वत ज्ञान द्वारा कर्म को करते हुए धर्म-संस्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका पूर्ण कर गए। श्री कृष्ण को जगतगुरु रूप में स्वीकार किया गया क्योंकि वे सभी शिक्षकों के शिक्षक हैं वसभी गुरुओं के गुरु हैं। श्री कृष्ण स्वरुप सतगुरु भी शिष्य को इस यात्रा पर बढ़ने हेतु उसका मार्गदर्शन करते हैं। सतगुरु का प्रत्येक कार्य शिष्य के उत्थान के लिए ही है। सतगुरु द्वारा प्रदत्त ब्रह्मज्ञान ही सत्य और मोक्ष की प्राप्ति व विश्व को शांत और जीने के लिए एक बेहतर स्थान बनाने का एकमात्र मार्ग है।जगतगुरु श्री कृष्ण की शिक्षाओं के माध्यम से लोगों ने व्यक्तिगत और सामाजिक उत्थान हेतु समस्याओं को समूल समाप्त करने का सूत्र प्राप्त किया।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥
भावार्थ: हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ॥ साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ॥ -भगवत गीता
मोह का त्याग करके ही मनुष्य प्रेम के सत्य से परिचित हो सकता है, व समाज का कल्याण कर सकता है- भगवत गीता