New Delhi News, 27 May 2019 : श्रीमद् भागवत महापुराण में प्रभु के उदात चरित्र का वर्णन आता है। उन की शिक्षाओं को बहुत सुगमता से जन मानस तक इन्हें पहुंचाने के लिए रामलीला मैदान, पुलिस स्टेशन के सामने, प्रह्लादपुर, नई दिल्ली में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सात दिवसीय श्रीमद् भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया गया है। कथा के पंचम दिवस में परम पूजनीय सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथा व्यास कालिंदी भारती जी ने समुद्र मंथन का विश्लेषात्मक विवेचन किया। उन्हांने बताया कि देवताओं एवं दानवों ने अमृत की प्राप्ति के लिए मिल कर सागर मंथन किया परंतु उस में से सबसे पहले विष निकलता है जिसका पान देवों के देव महादेव करते हैं। साध्वी जी ने बताया कि विष का पान करने के उपरांत भी उन्हें नशा नहीं हुआ। क्योंकि उन्होंने नाम रूपी नशे का पान किया था परंतु आज सदाशिव के पर्व महाशिवरात्रि पर भांग का सेवन यह कह करते हैं कि प्रभु ने भी तो भांग पी थी। साध्वी जी ने बताया कि आज समाज का हर वर्ग इस नशे के नागपाश में जकड़ चुका है। आर्थिक मंदी, बेरोजगारी, निरंतर तनाव व दबाव तथा पल-पल बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने आज युवा पीढ़ी को नशे के भयावह साम्राज्य का पथिक बना दिया है। स्वतंत्र देश का वासी होते हुए भी वह नशे की गिरफ्त में आकर पराधीनता का जीवन व्यतीत कर रहा है। जिस युवा के सहारे कोई देश स्वयं के लिए समुज्जवल भविष्य की किरणें देखता है आज वही युवा अपने देश के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह बनकर खड़ा हो गया है। असामाजिक तत्त्व तो पहले ही देश पर घात लगाकर बैठे हैं क्योंकि सारी दुनिया में से सबसे ज़्यादा युवा भारत में ही हैं। नशीले पदार्थ घरों में सेंध लगाकर उनके हंसते-खेलते जीवन को लूट रहे हैं। जिसके परिणाम स्वरूप पारिवारिक और नैतिक मूल्य स्वार्थपरायणता की चिता पर जल पर खाक हो रहे हैं। नशों के व्यापार को संरक्षण देने वाले इस बात को समझ नहीं रहे हैं कि चंद पैसों की खातिर वह अपने देश को किस गर्त में धकेल रहे हैं। भारत के हर एक शहर में अफीम, स्मैक, चरस, गांजा, कोकीन इत्यादि बेचने वाले सौदागर सक्रिय हैं। बड़े शहरों की दवाईयों की मंडियों में करोड़ों रुपयों की नशीली दवाओं का कारोबार होता है। थोड़ी बहुत छापेमारी के बावजूद इस कारोबार पर रोक नहीं लगती और नशे का यह दैत्य विकराल रूप धारण करता हुआ देश के युवा वर्ग को खोखला करता जा रहा है। देश के लगभग 73 मिलीयन लोग नशे के आदी हो चुके हैं जिनमें से 24 प्रतिशत की उम्र तो 18 साल से भी कम है। यह वह युवा शक्ति है जिसके आधर पर हम 2020 में विकसित राष्ट्र और 2045 तक विश्व की महाशक्ति बनने का स्वप्न देख रहे हैं, जो आज नशे की कंटीली राहों पर भटक रही है। यौवन इस बात पर निर्भर करता है कि आप में प्रगति करने की कितनी योग्यता है। हारे-थके मन से कोई युवा नहीं होता। यौवन तो वह है जो अपने महावेग से समस्याओं के गिरि शिखिरों को काट दे व विषमताओं के महा वट को उखाड़ दे। यदि किसी देश पर संकट के बादल छाए हैं तो युवा शौर्य ने ही प्रचंड प्रबंधन बन कर निदान किया है। साध्वी जी ने कहा कि समाज की प्रत्येक समस्या मन के स्तर पर जन्म लेती है और इसका समाधान भी मन के स्तर पर ही होना चाहिए। जब तक मानव मन को नियंत्रित करने की पद्धति नहीं प्रदान की जाती तब तक समाज में भयानक कुरीतियाँ व व्याध्यिाँ जन्म लेती रहती हैं। इस मन को काबू में करने हेतु ब्रह्मज्ञान की नितांत आवश्यकता है। जिससे विवेक शक्ति जागृत होती है। फिर ही व्यक्ति मन में उठती दुर्भावनाओं व वासनाओं पर नियंत्रण रख सकता है। नशा उपचार हेतु सरकारी, गैर सरकारी संगठनों द्वारा उपचार साधन या पद्धति लागू हो चुकी है लेकिन यह कितनी कारगर सिद्ध हो रही है यह किसी से भी नहीं छिपा है। भारत का ड्रग रिकॉर्ड कहता है कि उपचार के बावजूद भी 80 प्रतिशत नशाखोर फिर से नशा करने लगते हैं। उपचार प्रक्रिया से गुजरने के बाद उनका शरीर नशा मुक्त हो जाता है पर नशे की लत दिमाग से नहीं निकल पाती। इन पद्धतियों के बारे में जितनी भी जानकारी उपलब्ध हुई हैं वे अमोघ नहीं कही जा सकती। उनके विषय में व्यवस्थित व उचित खोज अभी शेष है। समाज में फैल रही नशे की समस्या पर रोक लगाने के लिए तथा जन मानस का सही मार्ग दर्शन करने के लिए संस्थान के संस्थापक व संचालक सर्व श्री आशुतोष महाराज जी ने ‘बोध’ नामक नशा उन्मूलन कार्यक्रम की स्थापना की जिसके अन्तर्गत ब्रह्मज्ञान की अमोघ पद्धति के द्वारा हज़ारों की संख्या में लोग नशा मुक्त हो चुके हैं।