New Delhi, 26 Oct 2020 : आप सभी ने अपने जीवन में खीरखाने का आनंद तो अवश्य ही उठाया होगा। औरसाल में एक ऐसा दिन भी आया होगा, जब पकाई गईखीर को रात भर चंद्रमा की रोशनी में रखने के बाद हीखाया होगा। यह पावन दिवस प्रति वर्ष आश्विन मास कीपूर्णिमा को आता है। इस दिन को हम सभी ‘शरद पूर्णिमा’या ‘कोजागरी व्रत’के नाम से जानते हैं। ऐसा माना जाता हैकि इस दिवस की चाँदनी से स्निग्ध हुई खीर के औषधीयगुण बहुत बढ़ जाते हैं। इसलिए उसके सेवन से सिर्फ जिह्वाको स्वाद नहीं, अपितु हमारे पूरे शरीर को फायदा पहुंचताहै। वैदिक ऋषियों व आचार्यों ने शरद ऋतु की इसपूर्णिमा के अनेक पक्षों पर प्रकाश डाला। आइए, हम उन सभी पक्षों से परिचित होते हैं, ताकि इस पर्व का पूरा लाभ व आनंद पा सकें।
‘पित्त-शामक’ शरद पूर्णिमा
सदियों से इस पर्व के दिन खीर, पोहा (चिवड़ा) व मुरमुरे खाने की प्रथा रही है। इन सभी को चंद्रमा की रोशनी में भीगने के लिए रात भर छोड़ दिया जाता है। फिर अगली सुबह ही इनका सेवन करने की रीत है। इस पर्व को सिर्फ पारिवारिक स्तर पर ही नहीं मनाया जाता। बल्कि जन-कल्याण हेतु इस दिन कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ विशेष शिविरों का आयोजन करती हैं। इन शिविरों में प्रतिभागियों को चाँदनी में भीगी खीर के साथ आयुर्वेदिक दवाइयों का सेवन कराया जाता है। इससे पुरानी खाँसी,दमा, जुकाम के रोगियों को काफी राहत मिलती है।
शरद ऋतु में अक्सर ‘पित्त’का स्तर ‘वात’ और ‘कफ’की तुलना में बढ़ जाता है। पित्त की इस असंतुलित बढ़ीमात्रा को एलोपैथी में ‘स्ट्रांग मेटाबॉलिज़्म’से जाना जाता है।आयुर्वेद के अनुसार इसको शांत करने का उपाय ठंडी तासीरके खाद्य पदार्थों का सेवन होता है। ऋषि-मुनियों ने इसी तथ्य को ध्यान में रखकर शरद पूर्णिमा के दिन खीर खाने की प्रथा बनाई ताकि शरीर में इन तीनों ऊर्जाओं की मात्रा संतुलित रहे और हम पूर्ण रूप से स्वस्थ रहें। भारतीय पुराणों में चंद्रमा को ‘सोम’ अर्थात् ‘पौधों-वनस्पतियों का देव’ माना गया है। शरद पूर्णिमा के दिन चाँद अन्य दिनों की तुलना में धरती के ज़्यादा नजदीक होता है। तो जाहिर सी बात है कि इस दिन चाँद की किरणों का प्रभाव भी खाद्य पदार्थों पर ज़्यादा और गहरा होता होगा। ऐसे में,खीरको चाँद की रोशनी में,मिट्टी के पात्रों में पकाने पर खीरकी औषधीय गुणवत्ता का अधिक हो जाना स्वाभाविक ही है।‘साधारण’ खीर से ‘बहुमूल्य औषधि’ में परिवर्तित हुई यह खीर इंसान के शरीर को सर्दी के मौसम में होने वाली बीमारियों से लड़ने के लिए तैयार तो करती ही है;साथ ही, ऐसी खीर के साथ विशेष रूप से निर्मित आयुर्वेदिक दवाई लेने पर कई पुरानी बीमारियों का इलाज होना भी संभव होता है।
‘ध्यान-अनुकूल’ शरद पूर्णिमा
पूर्णमासी के दिन धरती पर चाँद की ऊर्जा का प्रवाह तीव्र और औसत से अधिक होता है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए कई शोध बताते हैं कि हमारे मस्तिष्क में जो ‘पीनियल ग्लैंड’ है, वह इस विद्युत-चुंबकीय ऊर्जा के प्रति संवेदनशील होता है। विद्युत-चुंबकीय ऊर्जा के प्रभाव से पीनियल ग्लैंड से होने वाले मेलाटोनिन के स्राव में कमी आती है। इस बात की पुष्टि बेसल विश्वविद्यालय (स्विटज़रलैंड) के मनोरोग चिकित्सा विभाग ने भी की।
इस शोध से यह बात प्रमाणित हुई कि पूनो के चाँद वाली रात मेलाटोनिन का स्राव कम होने से नींद कम और कच्ची आती है। ब्रह्मज्ञानी साधक इस स्थिति का पूरा लाभ उठा सकते हैं। रात-भर ध्यान में लीन रहकर अपना आत्मिक उत्थान कर सकते हैं। शरद पूर्णिमा की रात्रि आह्वान करती है- ‘हे साधकों! यह रात्रि साधारण नहीं। जागने की रात है! बाहरी आँखें खोलकर नहीं, अपितु भीतरी नेत्र खोलकर!’
‘श्री-प्रदात्री’ शरद पूर्णिमा
शरद पूर्णिमा का एक नाम ‘कोजागरी पूजा’ भी है। यह संस्कृत उक्ति ‘को जागृति’ का अपभ्रंश है,जिसका अर्थ हुआ ‘कौन जाग रहा है?’ भारतीय पुराणों के अनुसार पूनो की इस रात्रि को जो भी साधक ब्रह्मज्ञान की ध्यान-साधना करते हुए जागृत रहते हैं,उनको माँ लक्ष्मी आध्यात्मिक एवं भौतिक ‘श्री’ का वरदान देती हैं।मद, लोभ, ईर्ष्या, काम, क्रोध आदि सर्प-रूपी वृत्तियाँ निरंतर हमारे विचारों के वन में अपने फन फैलाए बैठी रहती हैं। इनके खेल में मानव ऐसा लिप्त होता है कि अपनी आत्मा की भूख-प्यास को बिसार देता है। फिर उनके समक्ष सब कुछ हार जाता है। पर तब भी यदि वह सच्चे हृदय से प्रभु को पुकार ले, तो शरद पूर्णिमा का ऐसा प्रताप है कि परम करुणामयी ईश्वर शीघ्र ही उस पर दया कर देंगे। तृण-भर प्रयास से ही प्रसन्न होकर उसे ‘श्री’ की प्राप्ति करवा देंगे। ‘श्री’ अर्थात् आध्यात्मिक एवं भौतिक सम्पन्नता।साधकों! शरद पूर्णिमा से जुड़े शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक पक्षों को तो आपने जान लिया। अब बारी है, उनको अपने जीवन में क्रियान्वित करने की। आशा करते हैं कि आप सबको भी माँ लक्ष्मी से इस दिन ‘श्री’ की प्राप्ति हो।