New Delhi News, 18 Feb 2019 : मैं धन की कामना नहीं करती, मुझे कोई पद नहीं चाहिए, ना ही मैं मोक्ष की इच्छा रखती हूँ, चाहे तो मुझे सौ नरकों में रखो बस प्रभु मुझे आपकी भक्ति चाहिए। ये भाव थे भक्त मीराबाई द्वारा लिखित पंक्तियों के जिससे ये स्पष्ट है कि किस तरह उनके ह्रदय में प्रभु प्रेम, उनकी भक्ति समायी हुई थी। मीराबाई जी को आज मुख्यतः भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त के रूप में जाना जाता है जिन्होंने प्रभु प्रेम में अनेको पदों की रचनाएँ की है लेकिन बहुत की कम लोग ये बात जानते है कि उन्होंने महिलाओं के प्रति हो रही सामाजिक बुराइयों से लड़ने में अपने महत्वपूर्ण योगदान के साथ भारतीय संस्कृति के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीति से लड़ने में एक अहम् भूमिका निभाई। महिलाओं पर हो रहे इस अत्याचार के खिलाफ उन्होंने निर्भयता से आवाज़ उठाई एवं समाज में निस्वार्थ सेवा भावना की एक मिसाल प्रस्तुत की।
लेकिन उनके पास ऐसी कौन सी शक्ति थी जिसके बल पर वो यह सब कर पाईं। मीराबाई जी के जीवन के इन्ही अनछुए पहलुओं को उद्घाटित करने हेतु, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा कुंभ मेला में सर्व श्री आशुतोष महाराज के दिव्य तत्वाधान में संत मीराबाई जी के जीवन पर आधारित एक नाटिका का मंचन किया गया जिसे श्री महाराज जी के शिष्य सेवादारों द्वारा प्रस्तुत किया गया। संगीतबद्ध इस नाटिका ने सबको भावविभोर कर डाला। साध्वी शैलासा भारती जी ने बताया कि उल्लेख अनुसार मीराबाई जी एक निडर, समाज एवं परिवार द्वारा उपेक्षित एवं एक महान कृष्णभक्त थी। सती प्रथा का विरोध करने पर उनके ससुरालवालों ने उन्हें कई तरह की यातनाएँ दी और उनके प्राणांत करने के कई प्रयास किये। उनके भक्ति पथ को सही दिशा तब मिली जब उनके जीवन में ब्रह्मनिष्ठ गुरुदेव संत रविदास जी आये जिनसे उन्होंने ब्रह्मज्ञान की दीक्षा प्राप्त की। ज्ञान प्राप्ति के पूर्व वह भगवान के साकार स्वरुप को जानती थी किन्तु तृतीय नेत्र खुलने के बाद उन्होंने उस परमसत्ता के वास्तविक रूप उनके निराकार रूप का दर्शन अपने घट भीतर किया। अपने गुरुदेव के बताए आदर्शों पर चलते हुए वो एक स्वतंत्र सोच एवं शक्ति की परिचायक बन गई। उन्होंने जाति प्रथा तथा महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों जैसी अन्य कई सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्होंने निर्धन एवं जरुरतमंदो के मध्य जा कर प्रभु के दिव्य सन्देश का प्रचार प्रसार किया।
साध्वी जी ने आज के संदर्भ में बताया कि गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज भी एक ऐसे ही पूर्ण संत है जिनकी कृपा हस्त तले असंख्य महिलाएं ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति कर आत्मा जाग्रति की ओर उन्मुख हुई है और स्वयं के विकास के साथ साथ विश्व शान्ति जैसे महान लक्ष्य में निस्वार्थ योगदान दे रही हैं। यहश्री महाराज जी के ही कथन है कि नारी ही नवयुग लाएगी और आने वाला समय इस बात का प्रमाण होगा।