New Delhi News, 17 Sep 2021 : ‘क्रांति’का अर्थ क्या होता है? आनंदपूर्ण परिवर्तन अर्थात्पूर्ण बदलाव। विश्व ने आज तक अनेक क्रांतियाँ देखी हैं-राजनैतिक, सामाजिक, औद्योगिक, आर्थिक आदि। हर क्षत्र मेंऔर हर स्तर पर क्रांतियाँ घटी हैं। आप हैरान होंगे किसकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए पिछले 3000 सालों मेंकरीबन5000 युद्ध लड़े जा चुके हैं। पर प्रश्न है कि क्या येक्रांतियाँ या क्रांतिकारी युद्ध अपने लक्ष्य में सफल हुए? क्यासमाज में कोई आनंदपूर्ण बदलाव आया?विडम्बना है कि स्थितियाँ बेहतर होने की अपेक्षाबदतर होती गईं। समाज को शोषण से मुक्त करने के लिएजिन्होंने नारे बुलन्द किए, वे खुद ही शोषक बन गए। उदाहरणतः रूस कीक्रांति। रूस का ज़ार तानाशाह था। उसकी तानाशाही व अत्याचारसे जनता त्रस्त थी। लेनिन ने उसके विरुद्ध एक क्रांति का सूत्रपातकिया। क्रूरज़ार को सत्ता से उतार फेंका। फिर? फिर क्या हुआ?लेनिन के रूप में एक दूसरा क्रूर शासक सत्तारूढ़ हो गया। अपनीसत्ता को बनाए रखने के लिए उसने हर विरोधी को कुचल डाला।विदेशी क्रांतियों की ही क्यों, अपने देश भारत कीक्रांति की ओर दृष्टिपात करें। फिरंगियों को अपनी धरती सेखदेड़ देने के लिए क्रांतिकारी वीरों ने बलि चढ़कर स्वतंत्रता-संग्राम की ज्वाला को जीवित रखा। परिणाम- भारतस्वतंत्र हुआ।भारत विश्वमें सबसे बड़ा जनतंत्र देश बन गया। पर मैं पूछता हूँ कि जनतंत्रऔर राजतंत्र में फर्क क्या है? जो कार्य पहले राजा किया करतेथे, वही अब नेता करते हैं। फिर बदलाव कहाँ आया? केवलनाममात्र में।इसलिए मेरा तो यही कहना है कि जब तक क्रांतियोंद्वारा केवल व्यवस्थापक बदले जाएँगे, तब तक स्थिति बदलनेवाली नहीं। जब तक क्रांतियों का लक्ष्य केवल व्यवस्था बदलनाहोगा, तब तक भी आनंदकारी परिवर्तन की इच्छा एक चिर पुकारबनकर मानव के हृदयों से उठती रहेगी। फिर समाधान क्या है? क्रांतियों का लक्ष्य अगर व्यवस्थापक या व्यवस्था बदलना न हो, तो क्या हो?
इस प्रश्न का एक ही उत्तर है। यदि बदलना है, तोव्यवस्थापकों के अंतर्मन को बदलो। लोभी, लालची, सांसारिकइच्छाओं-तृष्णाओं से भरा मन ही क्रांतिकारी को पथभ्रष्ट करताहै और क्रांतियों को विफल। किसी दार्शनिक ने ठीक कहा है-Eradicate thecause&symptomswilldisappear- मूलभूत कारण को ही खत्म कर दो, उससे उत्पन्न लक्षण तोअपने आप ही लुप्त हो जाएँगे।अतः मेरा यही कहना है कि जब तक इंसान का मनविकसित नहीं हुआ, चेतना जागृत नहीं हुई, तब तक वह कभीकिसी समाधान का अंग नहीं बन सकता। केवल और केवलसमस्या का ही अंग बनेगा। अगर यथार्थ में क्रांति लानी है, यानीआनंदकारी परिवर्तन की चाह है, तो सर्वप्रथम व्यक्ति की चेतनाऔर अंतर्मन में परिवर्तन लाना होगा। अध्यात्म द्वारा उसे जागृतकरना होगा। ब्रह्मज्ञान की अग्नि में उसके मन-चित्त में बसेकुसंस्कारों, तृष्णाओं, स्वार्थों को स्वाहा करना होगा। इस मन रूपी जड़ को परिवर्तित करने पर हीसमाज में परिवर्तन संभव है। और यह परिवर्तन केवल‘ब्रह्मज्ञान’द्वारा ही आ सकता है।इस परिवर्तन को ही महर्षि अरविंद ने ‘संपूर्ण क्रांति’ व ‘सांस्कृतिक क्रांति’कहा है। ‘सांस्कृतिकक्रांति’का अर्थहै- संस्कारित करना, परिष्कृत करना, भीतर से सजाना औरपरिवर्तन लाना। यह ऐसी क्रांति है, जिससे हमारा हृदय, हमारीचेतना, हमारा अंतःकरण, मन-चित्त, आंतरिक प्रवृत्ति हीसकारात्मक रूप से बदल जाए।निःसंदेह,आज विश्व को ऐसी ही क्रांति कीआवश्यकता है।अंत में, मैं यही कहूँगा-Tohavepeaceintheworld, weneedno more ‘Revolution’, butman’s ‘Evolution’- विश्व में शांति के लिए हमें क्रांतियों कीआवश्यकता नहीं है, बल्कि मानव की चेतना के विकास की ज़रूरत है। ब्रह्मज्ञान का प्रचार-प्रसार कर दिव्य ज्योतिजाग्रति संस्थान आज इसी कार्य में संलग्न है।संस्थान की ओर से सभी को विश्व शांति दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।