“उतिष्ठित भारत ”विश्व शान्ति मिशन में युवाओं को निभानी होगी अग्रणी भूमिका

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New Delhi News, 15 Oct 2019 : स्वामी विवेकानंद जी ने एक मुक्त उद्घोष किया था-यदि मुझे 100 युवा मिले तो मैं भारत को परिवर्तित कर दूंगा। इस उद्घोष में उन्होंने आह्वाहन किया था सम्पूर्ण भारत वर्ष के उन युवाओं का जो आध्यात्मिक रूप से जाग्रत हो अर्थात जो ब्रह्मज्ञान की पुरातन विद्या से परिपूर्ण हों। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज के दिव्य सानिध्य में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा दिल्ली के दिव्यधाम आश्रम में “उत्तिष्ठत भारत” नामक एक अनूठी द्वि-दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसकाउद्देश्य युवाओं का निर्माण कर उन्हें आकार प्रदान करना था जिससे वह स्वार्थ एवं स्व केन्द्रित आकांक्षाओं से मुक्त होकर, समाज के कल्याण एवं एकीकरण की भावनाओं से युक्त हो पाएं।

श्री गुरुदेव के युवा सेवादारों के लिएआयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य विभन्न सामाजिक एवं आध्यात्मिक पहलुओं के माध्यम से युवा सेनानियों को प्रेरित एवं राष्ट्र निर्माण में अग्रणी भूमिका अदा करने हेतु आंदोलित करना था। इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों के युवा सेनानियों ने भाग लिया। यह कार्यक्रम, योग शिविर, नाट्य प्रस्तुति, भजन, आध्यात्मिक प्रवचन, सोशल मीडिया जागरूकता, कार्य जीवन संतुलन जैसी विविध गतिविधियों का अनूठा समन्वय था। इस कार्यक्रम ने एक ओर जहाँ शिष्यों को ज्ञान एवं भक्ति के मार्ग की ओर अग्रसर किया वहीं दूसरी ओर उनके भीतर देश भक्ति, एकता एवं निःस्वार्थ सेवा की भावना का भी संचार किया।

द्वि- दिवसीय इस कार्यक्रम का आरम्भ प्रातःकालीन योग सत्र द्वारा किया गया जहाँ योग विशेषज्ञों की देख-रेख में विभिन्न आसन, प्राणायाम, का अभ्यास कराया गया। इसके अतिरिक्त योग शिविर में सामूहिक ध्यान-साधना का भी आयोजन किया गया। कार्यक्रममें 2 विशेषनाटिकाओंकाप्रस्तुतीकरणकियागया। रामायण काल पर आधारित पहली नाटिका में भरत के सेवक पक्ष का चित्रण किया गया। श्री राम के वनवासगमन के बाद भरत ने प्रभु श्री राम की आज्ञानुसार पूरे चौदह वर्षों तक एक सेवक की भांति अयोध्या का कार्यकाज संभाला था। हम सभी को ईश्वर द्वारा कुछ भूमिकाएं सौंपी गई हैं किन्तु अपने भीतर के अभिमान के कारण हम उन्हें पूरा करने में चूक जाते हैं। भरत का पात्र हमें निश्छल प्रेम एवं निःस्वार्थ सेवा की भावना का सन्देश देता है। दूसरी नाटिका के माध्यम से दान के महत्व को समझाया गया। ज्ञान, समय, धन इत्यादि के रूप में किया दान मानवीय दृष्टिकोण को व्यापक करने में सहायक सिद्ध होता है। यह समाज में उन्नति करण एवं एकता की भावना को बढ़ावा देता है। एक सच्चा दानवीर वही कहलाता है जो स्वयं के साथ दूसरों को भी उन्नति के पथ पर अग्रसर करता है। दान के अपेक्षित परिणाम के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि दान सही कारण से एवं सही पात्र को ही किया जाना जाए।

स्वामी नरेंद्रानंद जी एवं स्वामी प्रदीपा नन्द जी ने प्रेरणादायी एवं ओजस्वी विचारों एवं अनुभवों के माध्यम से श्री गुरुदेव के परम लक्ष्य एवं दिव्य विचारों को साँझा किया। उन्होंने समझाया कि भक्ति के मार्ग में आने वाली चुनौतियों का सामना कर उन्हें किस प्रकार शिला लेख में परिवर्तित किया जा सकता है। संशय एवं नकारात्मकता से परे इस कार्यक्रम ने सम्पूर्ण वातावरण में सकारात्मक तरंगों का संचार किया।

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