वाशिंगटन। रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों को लेकर अमेरिका म्यामांर की आंग सान सू ची की असैन्य सरकार को बिना खतरे में डाले सावधानीपूर्वक देश की सेना पर दबाव डाल रहा है। अमेरिका इस क्षेत्र को लेकर काफी सक्रिय भूमिका में है। कई अमेरिकी प्रतिनिधि हाल के समय में इस क्षेत्र में आए हैं।
वहीं विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन की योजना बुधवार को म्यामांर की नेता आंग सान सू ची से मिलने की है। टिलरसन म्यामांर के सेना प्रमुख मिंन आंग हलाइंग से भी मिलेंगे। म्यामांर को पहले वर्मा के नाम से जाना जाता था। ऐसा माना जा रहा है कि टिलरसन वहां सैन्य नेताओं के साथ कड़े रूख में बातचीत करेंगे क्योंकि उन्होंने रोहिंग्या संकट के लिए सेना को जिम्मेदार ठहराया था। रोहिंग्या मुस्लिम म्यामांर में अल्पसंख्यक हैं और पिछले करीब ढ़ाई महीने में इस समुदाय के करीब 6,00,000 सदस्य अपना देश छोड़कर बांग्लादेश चले गए हैं।
रोहिंग्या विद्रोह को दबाने के नाम पर अगस्त के अंत से ही सेना रखाइन प्रांत में अभियान चला रही है। इस दौरान कई गांव जला दिए गए और हजारों लोग अपना घर छोड़ने को मजबूर हो गए। संयुक्त राष्ट्र ने सेना द्वारा चलाए गए इस अभियान और हत्या तथा बलात्कार के आरोपों की निंदा की है और इसे ‘जातीय सफाया’ बताया है। विदेश मंत्रालय में शरणार्थी और प्रवासी मुद्दों का कार्यभार संभालने वाले विदेश मंत्रालय के अधिकारी सीमॉन हेनशॉ हाल ही में म्यामां और बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों से लौटे हैं।
उन्होंने शिविरों की स्थिति स्तब्ध करने वाली बताई है। टिलरसन ने पिछले महीने कहा था, ‘दुनिया सिर्फ खड़ी होकर उस क्षेत्र में हो रहे अत्याचारों का मूकदर्शक नहीं बन सकती है।’ हालांकि अभी यह साफ नहीं हो पाया है कि अमेरिका कौन से कदम उठाने वाला है। अभी तक विदेश मंत्रालय ने म्यामांर की सेना को लक्ष्य करते हुए कुछ दंडात्मक कदम ही उठाए हैं। बहरहाल, विदेश मंत्रालय ने आगे प्रतिबंध लगाने के कदम से इंकार नहीं किया है। लेकिन अमेरिकी सरकार आंग सान सू ची पर आरोप लगाने से बच रही है।