Hisar News, 29 Aug 2019 : इनफर्टिलिटी एक वर्ष से अधिक समय तक असुरक्षित यौन संबंध बनाने के बावजूद गर्भधारण न कर पाने की अक्षमता है। भारत में यह लगातार बढ़ रही स्थिति चिंता का विषय बनती जा रही है। लगभग 4 से 17 प्रतिशत भारतीय जोड़ों में इनफ र्टिलिटी की समस्या पायी गयी है। इनफर्टिलिटी की समस्या से पुरूष और स्त्री दोनों ही समान रूप से प्रभावित हो सकते हैं। एक-तिहाई मामलों में इसके लिए पुरुष उत्तरदायी हैंए एक-तिहाई मामले महिलाओं के चलते हैं और शेष मामले पुरुषों व महिलाओं दोनों के चलते हैं या फि र उनके कारणों का पता नहीं है। इनफ र्टिलिटी से जुड़े तमाम मिथकों के मद्देनजर, यह उपचार कराने वाले कपल्स अपनी इनफर्टिलिटी को लेकर कलंकित महसूस करते हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं के इनफर्टाइल होने की अधिक संभावना होती है इनफर्टिलिटी के लिए हमेशा से महिलाओं को जिम्मेवार ठहराया जाता रहा है। नोवा इवीफर्टिलिटी, हिसार की फर्टिलिटी कंसल्टेंट, डॉ. पूजा भयाना ने प्रैस वार्ता में बताया कि लोग इस बात से अनजान होते हैं कि इससे पुरुष भी प्रभावित हो सकते हैं। पुरुषों की इनफ र्टिलिटी के अधिकांश मामले शुक्राणु की कम संख्या, शुक्राणु की बाद की मूवमेंट और शुक्राणु के असामान्य आकार से जुड़े होते हैं जबकि महिलाओं में इसके लिए अधिकांशतया अनियमित अण्डोत्सर्जन, एंडोमेट्रियोसिस, पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम एवं कम ओवेरियन रिजर्व जैसे कारक जिम्मेवार होते हैं।
हालांकि हल करने के लिए एक बड़ी चुनौती आमतौर पर माना जाता है कि महिला साथी इनफर्टिलिटी के लिए जिम्मेदार है। हमें कई ऐसे मामले देखने को मिलते हैं जिनमें पुरुष इनफर्टिलिटी के बारे में बताने या इसकी जांच कराने में संकोच करते हैं। पुरुषों में इनफर्टिलिटी के लिए विभिन्न चिकित्सकीय, पर्यावरणीय एवं जीवनशैली संबंधी कारक जिम्मेवार हो सकते हैं यौन समस्याओं एवं हॉर्मोन संबंधी कारकों को छोडक़र, धूम्रपान, शराब का सेवन, नशीले पदार्थों, स्टेरॉयड्स का सेवन, कैंसर की दवायें, रेडियेशन या केमोथेरेपी, पेल्विक सर्जरी, और संक्रमण जैसे-यौन संक्रमित बीमारियां (एसटीडी) ऐसे कई कारक हैं, जिनका शुक्राणु के निर्माण एवं उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ सकता है, जिससे पुरुषों में इनफर्टिलिटी के मामले बढ़ते हैं। कुछ पर्यावरणीय कारक जैसे कि गर्मी, विषाक्त पदार्थों और रसायनों का अत्यधिक मात्रा में ग्रहण पुरुषों में शुक्राणु के उत्पादन को भी प्रभावित कर सकते हैं। औद्योगिक रसायन, भारी धातुएं जैसे सीसा, लंबे समय तक बैठे रहने के चलते अंडकोष का गर्म रहना या लंबे समय तक लैपटॉप या कंप्यूटर पर काम करना, शुक्राणुओं के उत्पादन और कार्य को बाधित करता है। डॉ. पूजा भयाना ने बताया कि तकनीक में प्रगति के साथ, दंपतियों के पास आज इनफर्टिलिटी से लडऩे के लिए कई उन्नत तकनीकें उपलब्ध हैं। आईवीएफ के माध्यम से गर्भ में पल रहे शिशुओं में आनुवांशिक असामान्यताएं होती हैं