संयुक्त राष्ट्र। संयुक्त राष्ट्र की एक रिर्पोट में हिंसक हमलों में शांतिदूतों की लगातार हो रही मौतों के लिए दूर-दराज इलाकों में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के नेतृत्व की कमी और जमीनी स्तर पर कार्रवाई नहीं किये जाने को जिम्मेदार बताया गया है।
इस दिशा में बड़े कदम उठाने की आवश्यकता है जिसमें दृढ़ता, समय से कार्रवाई और जरूरत पड़ने पर बल का प्रयोग करने की अनुमति हो। रिर्पोट में कहा गया, ‘‘कोई भी मजबूत प्रतिद्वंद्वी पर हमला नहीं करता।’’ संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस द्वारा अधिकृत यह रिर्पोट कल जारी की गई। इस रिर्पोट पर आया खर्च चीन ने उठाया है।
संयुक्त राष्ट्र के हैती और कांगो में पूर्व कमांडर सेवानिवृत्त ब्राजील के लेफ्टिनेंट जनरल कार्लोस अल्बर्टो डॉस सैंटो क्रूज़ और माली में शांति अभियान में कर्मचारियों के एक पूर्व प्रमुख सेवानिवृत्त अमेरिकी सेना कर्मी विलियम फिलिप्स के नेतृत्व में यह रिर्पोट तैयार की गई है।
रिर्पोट में कहा गया, वर्ष 2013 से अभी तक पांच वर्षों में ‘‘हताहतों की संख्या बढ़ी है।’’ संयुक्त राष्ट्र के सुदूर इलाकों में जारी 15 शांति अभियानों के दौरान हुई हिसंक घटनाओं में 135 सैनिक, पुलिस और असैन्य नागरिक मारे गए हैं। ‘‘इतिहास में कभी-भी पांच साल के भीतर इतनी हत्याएं नहीं हुईं।
रिर्पोट में संयुक्त राष्ट्र के 1,00,000 शांतिदूतों की सुरक्षा को लेकर आगाह करते हुए कहा गया, ‘‘ये असामान्य एवं अस्वीकार्य स्तर पर जोखिम उठाते हैं तथा इसके और बढ़ने की आशंका है।
35 पृष्ठों की इस रिर्पोट में कहा गया कि शांति अभियानों के लिए सैनिकों तथा पुलिस मुहैया कराने वाले संयुक्त राष्ट्र और अन्य देशों को ‘‘नई वास्तविकता को अपनाने की आवश्यकता है।
रिर्पोट के अनुसार वर्ष 1948 में पहले शांति अभियान से अभी तक 69 वर्षों में द्वेषपूर्ण कृत्यों में 943 शांतिदूत मारे जा चुके हैं।