New Delhi News, 25 Aug 2021 : मुसीबतों से घबराओ नहीं, उनका डटकर सामना करो। अपने जीवन की हर अमावस्या को पूर्णिमा में परिणित करने का जज्बा रखो।महापुरुषों का आदर्शमयी जीवन भी हमें यही प्रेरणा देता है। उनके हौंसलो की गर्जना के आगे प्रत्येक परेशानी सहम कर लौट जाती थी। उनके संयम और धैर्य की शीतलता से बड़े-बड़े ज्वालामुखी शांत हो जाते थे। उनकी सकारात्मक सोच दुःख की कालिमा में भी सुख का उजाला कर देती थी। द्वापर में भी ऐसे ही एक महान अवतार का प्राकट्य हुआ था, जिन्हें आज संसार भगवान श्री कृष्ण के नाम से पूजता है। उनका सम्पूर्ण जीवन संघर्ष की एक खुली किताब है। जन्म से लेकर देहावसान तक, शायद ही उनके जीवन में कभी सुख-चैन की घड़ियाँ आईं हों। लेकिन अपने बुलंद इरादों से उन्होंने हर विलापमय क्षण को मांगल्य के क्षणों में तब्दील कर दिया। हर ढल चुकी शाम को दोपहर की तरह स्वर्णिम बना दिया। उन्होंने दिखा दिया इस निराश दुनिया को, कि कैसे सर्प के सिर से जहर की जगह मणि की प्राप्ति की जा सकती है। कैसे सागर की उफनती लहरों में डूबने की जगह, उन पर तैरा जा सकता है। आइए, हम भी उनकी जीवन-लीला से अपने लिए प्रेरणा के कुछ रत्न चुनें।
सबसे पहले, हम उनके जन्म का समय देखें। रात्रि बारह बजे। यह ऐसा समय है, जब विराट सूर्य भी अंधकार की गहरी खाई में खो जाता है। यह समय देवताओं के रमण का नहीं, अपितु भूत-प्रेतों के नग्न तांडव का होता है। चंद शब्दों में समेटें तो, रात्रि के बारह बजे संसार की प्रत्येक क्रिया काली होती है।लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने यह कालिमा नहीं देखी। अगर कुछ देखा तो वह थी चंद्रमा की उज्जवल रौशनी। उन्होंने घोर रात्रि को अपने जन्म का लगन चुनकर, यह दिखा दिया कि इंसान की सोच ही समय को अनुकूल या प्रतिकूल बनाती है। हम समय के गुलाम नहीं, बल्कि वह ही हमारा गुलाम है।भगवान श्री कृष्ण का जन्म स्थल भी क्या था? कारागार। अत्यंत अशोभनीय स्थान।यहाँपर जन्म लेकर उन्होंने सारी दुनिया को दिखा दिया कि जन्म-स्थान के कारण कोई महान नहीं होता। महान होता है तो अपने कर्मों से। आप संसार के कैदखाने में जन्म लेकर भी कैदी की तरह नहीं, एक जेलर की तरह जी सकते हैं। जो कारागार में होते हुए भी बंधन में नहीं है। मुक्त है।इसके बाद जब वासुदेव प्रभु को लेकर यमुना पार करने लगे, तो भयंकर तूफान और बारिश होने लगी। प्रभु ने एक विशालकाय सर्प द्वारा अपने पर छाया करवाई। सर्प काल का प्रतीक माना जाता है। उसका कार्य ही मृत्यु देना है। लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने उसे अपना रक्षक बनाया। इस लीला द्वारा उन्होंने समाज के समक्ष एक बहुत विस्फोटक विचार रखा कि, यदि काल से भागना चाहोगे, तो नहीं भाग पाओगे। इसलिए उसे अपना मित्र बना लो। जब दुश्मन को ही दोस्त बना लिया, तो उससे भय कैसा? बल्कि अब दुश्मन ही तुम्हारी रक्षा करेगा। जिसका काल ही रक्षक हो जाये, उसे भला कैसे कोई हरा सकता है? उसकी जीत तो निश्चित ही है।
तत्पश्चात् भगवान श्री कृष्ण नंद बाबा के घर पहुँचे। अब यहाँ, पूरा-का-पूरा गाँव उनके दर्शन करने के लिए उमड़ पड़ा। सब उनके रूप-रंग पर मंत्रमुग्ध हो गए। कृष्ण शब्द का अर्थ ही होता है- आकर्षित करने वाला। लेकिन अगर गौर करें, तो भगवान श्री कृष्ण का रंग कैसा था? काला। उनकी त्वचा श्याम रंग की थी। और यह तो जगजाहिर है, कि काला रंग अच्छा नहीं माना जाता। यह सब रंगों में सबसे अशुभ और उपेक्षित रंग है। लेकिन श्री कृष्ण ने यही रंग अपने लिए चुना। न केवल चुना, बल्कि अपने महान दृष्टिकोण से इस रंग में भी गुण ढूँढ़ निकाले।उन्होंने मानो समाज को यह समझाना चाहा कि काला रंग निन्दनीय नहीं, पूजनीय है। इसमें बहुत सी विशेषताएँ हैं। जैसे कि यह एक पूर्ण रंग है। यही एकमात्र ऐसा रंग है, जिस पर कभी कोई और रंग नहीं चढ़ता। अन्य सभी रंग तो किसी भी रंग में रंगे जा सकते हैं। पर श्याम, श्याम ही रहेगा। बल्कि अपने संसर्ग में आने वाले हर रंग को भी अपने जैसा ही कर लेगा।ऐसी और भी अनेक लीलाएँ हैं, जैसे छठी के दिन ही राक्षसी पूतना का वध, मात्र सात साल की आयु में गोवर्धन पर्वत उठाना, महाभारत युद्ध आदि- जो भगवान श्री कृष्ण के बुलंद हौंसलों और स्वस्थ सोच को प्रदर्शित करती हैं। सभी लीलाओं के द्वारा भगवान श्री कृष्ण ने यही आदर्श रखा कि हर परिस्थिति में हम हौंसला रखते हुए, सकारात्मक सोच रखते हुए फतह हासिल करें।लेकिन यह हौंसला और सकारात्मक सोच इंसान के भीतर तभी जन्म लेती है, जब उसका अंतस् प्रकाशित होता है। जब उसकी जाग्रत आत्मा से उसे आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है। यह सम्भव है मात्र ब्रह्मज्ञान से। एक पूर्ण सतगुरु हमें ब्रह्मज्ञान प्रदान कर परमात्मा के दिव्य प्रकाश रूप से जोड़ देते हैं। फलतः हमारा अंतस् आलोकित होता है और हम भगवान श्री कृष्ण की तरह जीने की कला सीख पाते हैं। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।